बाकि है ......
अभी तो मोहब्बत का इम्तिहान बाकि है
प्यासी आँखों में कुछ कर गुजरने का अरमान बाकि है
रोता क्यों है ऐ मंजिल के मुसाफ़िर
टूटती सांसो में अभी जीने का उफान बाकि है |
रुखसत होना भी दुनिया का ही रश्म है
खोया है मैंने, नादानी में जो सम्मान
मेरी हर रगों में पाना अपना हर वो सम्मान बाकि है
मंजिल और रास्ते दोनों ही है मेरे सामने
पर न दुखे किसी का दिल मेरी वजह से
बस यही अरमान बाकि है|
चन्दन विश्वकर्मा
जौनपुर
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