रिटेल
महंगाई 5 महीने के
निचले स्तर पर:सब्जियों के सस्ते होने से अक्टूबर में 4.87% पर आई, सितंबर
में 5.02%
रही थी
Credit by https://dainik-b.in/n7drX9bwGEb
सब्जियों के दाम घटने से अक्टूबर
में रिटेल महंगाई घटकर 4.87% पर आ गई है। यह रिटेल महंगाई का 5 महीने का निचला स्तर है। सितंबर में ये 5.02% रही थी। वहीं खाने-पीने की चीजों की महंगाई 6.62% से कम होकर 6.61%
पर आ गई है।
महंगाई के घटने से मॉनेटरी
पॉलिसी कमेटी (MPC) को अपने पॉलिसी इंटरेस्ट रेट
रिव्यू में एक्स्ट्रा कुशन मिलेगा। दर में 2.50% की बढ़ोतरी के
बाद, कमेटी ने इसे चार बार स्थिर रखा
है, और उम्मीद है कि अगले महीने बैठक
में भी ऐसा ही किया जाएगा।
RBI की महंगाई को लेकर रेंज 2%-6% है। आदर्श
स्थिति में RBI चाहेगा कि रिटेल महंगाई 4% पर रहे। हालांकि अर्थशास्त्रियों का मानना है कि प्याज के कारण
सब्जियों की कीमतें अभी जोखिम बनी हुई हैं। इससे आने वाले महीनों में महंगाई में
बढ़ोतरी हो सकती है।
वित्तीय वर्ष 2024 के लिए महंगाई दर का अनुमान 5.4%
अक्टूबर महीने हुई RBI मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग की जानकारी देते हुए RBI गवर्नर ने कहा था कि वित्तीय वर्ष 2024 के लिए महंगाई
अनुमान को 5.4% पर बरकरार रखा है। उससे पहले की
मीटिंग में इसे 5.1% से बढ़ाकर 5.4% किया था।
RBI कैसे कंट्रोल करती है महंगाई?
महंगाई कम करने के लिए बाजार में
पैसों के बहाव (लिक्विडिटी) को कम किया जाता है। इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) रेपो रेट बढ़ाता है। जैसे RBI ने अप्रैल, जून और जुलाई में रेपो रेट में इजाफा न करने का फैसला किया था।
इससे पहले RBI ने रेपो रेट में लगातार 6 बार इजाफा किया था। RBI ने महंगाई के
अनुमान में भी कटौती की थी।
महंगाई कैसे
प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग
पावर से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 6% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य
सिर्फ 94 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को
देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
महंगाई कैसे
बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना
प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा
होंगे तो वह ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी
और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में
आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की
शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो
महंगाई कम होगी।
CPI से तय होती है महंगाई
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम
रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का
काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम
सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता
है।
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा
कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने
में अहम भूमिका होती है। करीब 300
सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।