रात के स्याह अँधेरे में बैठ कर







रात के स्याह  अँधेरे में बैठ कर 
सोचा  कुछ यु जिंदगी के सफ़र  का  किनारा कहा है |

हम तो चले थे तेरा हाथ पकड़कर ओ हम सफ़र 

मंजिल तो यही है पर मुसाफिर कहा है |

प्यार तो अब गुमनाम सा रहा 
जिन्दगी जीने का सलीका कहा है 


 दिल की कलम से ........|



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